दोस्तों इतिहास तो सबने अपने school life में जरूर ही पढ़ा होगा | लेकिन याद बहुत ही कम लोगों को होगा | दोस्तों हम भारतवासियों को अपने देश का इतिहास जरूर पता होना चाहिए | हमारे देश के वीर राजाओं की वीर गाथाओं के बारे में भी जरूर पता होना चाहिए | हमारे देश में बहुत से राजा हुए और बहुत से योद्धा भी हुए लेकिन सबके मन में एक सवाल जरूर आता होगा की भारत के सबसे महान राजा कौन थे और भारत के सबसे महान योद्धा कौन थे ?
हिन्दुस्तान की धरती पर ऐसे कई वीर हुए हैं जिन्होंने अपने शौर्य और अपने साहस के दम पर दुनिया को अपने आगे झुका दिया | जब भी कोई भारतवासी उनकी वीरता और उनके साहस को आज याद करता है तो उनका सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है | आज के इस पोस्ट में हम कुच्छ ऐसे वीरों के बारे बात करेंगे जन्होने हमे गर्व करने के कई मौके दिए | ये सभी वीर बहुत ही शक्तिशाली, साहस वाले और एक से बढ़कर एक है | इनको किसी भी स्थान पर रखना इनके साहस के सवाल उठाना होगा | इस पोस्ट से आपको इनकी वीरता को जानने का मौका मिलेगा और इनके गुणों से अपने जीवन में परिवर्तन लाने का मौका मिलेगा |
1. महाराणा प्रताप
भारत के महान योद्धा में महाराणा प्रताप का नाम हमेशा लिया जाता है | महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 में कुम्भलगढ़ के किले में हुआ था | इनका नाम जुबान पर आते ही हर हिन्दुस्तानी का सर फक्र से ऊँचा हो जात है | महाराणा प्रताप एक ऐसे योद्धा थे जिन्होंने अपने जीवन में बहुत उतार चढ़ाव देखे | उन्होंने अपने जीवन में हर दुःख हर कष्ट को गले लगा लिया लेकिन उस अकबर की गुलामी को स्वीकार नहीं किया | बल्कि वे वीरता और साहस से लडे और अकबर के नाको तले चने चबवा दिए | आप उनकी वीरता का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि अकबर ने एक भी युद्ध में महाराणा प्रताप का सामना नहीं किया और इतना ही नहीं अकबर महाराणा प्रताप का नाम सुनते ही पसीने पसीने हो जाता था | मुग़लों ने चित्तौडगढ़ सहित मेवाड़ के कई इलाकों में अपना कब्ज़ा कर लिया था और अकबर बाकी बचे हुए हिस्सों में कब्ज़ा करना चाहता था | महाराणा प्रताप को ये बात मंजूर नहीं थी | उन्होंने शपथ ली थी की जब तक मेवाड़ को पूर्ण रूप से आजाद नहीं करवा लेंगे तब तक वे शांत नहीं बैठेंगे | इसी शपथ के साथ उन्होंने राज महलों और उसकी सारी शानो शौकत का त्याग कर दिया | महराणा प्रताप के युद्ध में सबसे ज्यादा साथ उनके घोड़े चेतक ने दिया | वो उसे अपने पुत्र के सामान प्यार करते थे | चेतक ने उनकी कई बार जान भी बचाई थी | एक बार युद्ध के दौरान चेतक घायल हो गया लेकिन घायल अवस्था में भी महाराणा प्रताप युद्ध से दूर ले गया और उसी घायल अवस्था में भी 26 फीट के गहरी खाई को छलांग लगाकर पार कर लिया | इसके बाद बलीचा गाँव में अपना दम तोड़ दिया | हल्दी घाटी के युद्ध में मुग़ल सेना को खाली हाथ लौटना पड़ा | उसके बाद भी महाराणा प्रताप ने कई युद्ध जीते और कई किलों पर अपना झंडा लहराया | उनके शत्रु भी उनके वीरता के आगे झुक जाते थे |
2. वीर छत्रपति शिवाजी महाराज
भारत के महान योद्धा और वीरों में छत्रपति शिवाजी का नाम शीश पर है | छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म 19 फरवरी 1630 को शिवनेरी के दुर्घ में हुआ | इन्होने हिंदुत्व के रक्षा करते हुए सम्पूर्ण भारत को एक जुट कर दिया था | इन्होने अपने शौर्य और वीरता से मुग़लों और आदिल शाह को कई बार धुल चटाई थी | छत्रपति शिवाजी महाराज में एक अच्छे leader के सभी गुण थे | आज भी बहुत बड़ी बड़ी कंपनियों में इनके बारे में और इनकी leadership के बारे में बताया जाता है | छत्रपति शिवाजी की माता जी का नाम था जीजा बाई | जीजा बाई खुद भी एक बहुत बड़ी योद्धा थी | शिवाजी के पिता काफी समय तक घर से दूर रहे थे | इसलिए उनकी माता जी ने शिवाजी को बचपन से ही उन्होंने बहुत ज्ञान दिया था | उन्हें बचपन में ही रामायण पढाया, महाभारत पढाया, भगवान कृष्ण और अर्जुन की कहानियों के बारे भी बताया | शिवाजी अपनी माता जी से बहुत प्यार करते थे | उनकी माता जी ने बहुत ही कम उम्र में कई चीजों में कंठस्त कर दिया था | और दूसरी ओर उनके गुरु दादू जी कोंडेव उन्हें युद्ध कौशल और निति शाश्त्र में निपुण करने में लगे हुए थे | महाराज शिवाजी ने हुन्दुत्व के लिए बहुत बार मुग़लों से युद्ध किया और उनकी वीरता के चर्चों से मुग़ल साम्राज्य के हर राजा घबराते थे | उन्होंने स्थानीय किसानों को अपनी सेना के रूप में तैयार किया | शिवाजी ये बहुत अच्छी तरह से जानते थे की किसी भी साम्राज्य को स्थापित करने के लिए किलों का क्या महत्व है | इसलिए उन्होंने सिर्फ 15 साल की उम्र में ही उन्होंने आदिल शाही अधिकारियों को रिश्वत देकर तोरना, चकन और कोंडन किलों को अपने अधिकार में कर दिया | और वे यहीं नहीं रुके उन्होंने आबाजी सोंदेव की मदद से थाना, कल्याण और भिवंडी के किलों को मुल्ला अहमद से छीन कर अपने अधिकार में कर दिया | इन घटनाओं से आदिल शाही साम्राज्य में हडकंप मच गया | और इतना ही नहीं सन 1657 तक शिवाजी ने 40 किले जीत लिए थे | शिवाजी के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए सन 1659 में बीजापुर की बड़ी साहिबा ने अफजल खान को 10 हज़ार सिपाहियों के साथ शिवाजी पर आक्रमण करने को हुक्म दिया | लेकिन शिवाजी के युद्ध कौशल के कारण उनको हराना मुश्किल था इसीलिए अफजल खान ने शिवाजी को धोखे से मारने के लिए मिलने के लिए आमंत्रित किया | अफजल खान ने अपने मजबूत बाहों के ज़रिये शिवाजी को गले लगाने के बहाने उन्हें जान से मारने का प्रयास किया लेकिन शिवाजी पहले से ही तैयार थे उन्होंने अपने छिपा कर रखे बाघ नाका से शिवाजी ने अफज़ल खान का पेट ही चीर दिया | उसके बाद भी कई ऐसे युद्ध शिवाजी ने अपने वीरता के बलबूते जीते और आज हम लोगो का सर फक्र से ऊँचा कर दिया |
3. चन्द्रगुप्त मौर्य
इतिहास के महान योद्धाओं में चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपनी वीरता से और उनके गुरु आचार्य चाणक्य के सहयोग से एक अलग ही छाप छोड़ दी थी | उनका जन्म 340 ईसा पुर्व पाटलिपुत्र में हुआ था | उनकी वीरता का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं उन्होंने सिकंदर के प्रधानमंत्री को बहुत ही बुरी तरह से मात दी थी | ईसा पूर्व 326 में सिकंदर पूरी दुनिया को जीतते हुए भारत की तरफ बढ़ रहा था | उस समय भारत सोने की चिड़िया कहलाता था और उसी सोने की चिड़िया को लूटने के मकसद से सिकंदर भारत में लगातार आक्रमण पे आक्रमण कर रहा था | उस समय नंद राजवंश का सबसे बड़ा साम्राज्य मगध था | नंद राजवंश का सबसे बड़ा राजा धनानंद एक बहुत ही लालची राजा था | वो अपनी प्रजा से ज्यादा कर वसूलता था और उसे अपने भोग विलास, सट्टेबाजी और अय्याशी में खर्च कर देता था | आचार्य चाणक्य ने उनको बहुत समझाया की प्रजा से कर लेकर उसे प्रजा के कार्यों में लगायें | लेकिन ये बात सुनकर धनानंद को गुस्सा आ गया और उसने आचार्य चाणक्य का अपमान करके जमीन पर धकेल दिया | जिससे उनकी शिखा खुल गयी | बस तभी चाणक्य को बहुत गुस्सा आया और उन्होंने अपने अपने क्रोध को संकल्प में परिवर्तित किया और कहा “मैं तब तक ये शिखा नहीं बांधूंगा जब तक तेरे साम्राज्य को उखाड़कर एक अखंड भारत का राजा न लाकर खड़ा कर दूँ” | फिर चाणक्य ने एक 17 – 18 के लड़के के पीछे आपना सारा जीवन व्यतीत कर दिया | उस लड़के का नाम था चंदू जो आगे चलकर चन्द्रगुप्त मौर्य के नाम से जाना जाने लगा | आचार्य चाणक्य के मार्ग दर्शन में चन्द्रगुप्त मौर्य ने सिकंदर पर जीत हांसिल करी और फिर अलग अलग सामराज्य के राजाओं को अपने साथ मिलाकर नंदा राजवश के राजा धनानंद को उखाड़ के फेक दिया | धीरे धीरे आचार्य चाणक्य की रणनीति के आधार पर अखंड भारत का निर्माण किया और अखंड भारत के राजा बन गए | लोग कहते हैं “जो जीता वही सिकंदर” लेकिन हम कहते हैं “जो जीता वो चन्द्रगुप्त मौर्य” |
4. पृथ्वीराज चौहान
पृथ्वीराज चौहान एक ऐसे वीर थे जिन्हें अंतिम हिन्दू सम्राट के नाम से जाना जाता है | पृथ्वीराज चौहान का जन्म 1149 मे हुआ था | पृथ्वीराज चौहान ने मुहम्मद गौरी को 17 बार युद्ध में पराजित किया है और हर बार उसे जीवन दान दिया | मुहम्मद गौरी गजनी का सुल्तान था | वो अपने देश गजनी को सबसे धनि देश बनाना चाहता और चाहता था कि हिन्दुस्तान की तरह सोने की चिड़िय कहलाये | इसीलिए उसने पूरे भारत के राज्यों पर हमला करके लूटपाट और आतंक मचा राखा था | अंतिम में उसकी निगाहें दिल्ली पर टिकी हुई थी | वही दिल्ली जिसके सिंघासन पर पृथ्वीराज चौहान विराजमान थे | पृथ्वीराज चौहान एक बहुत ही वीर और युद्ध कला में बहुत ही निपुण योद्धा थे | शब्द भेद तीर अन्दाजी में तो वो माहिर थे | जब मुहम्मद गौरी ने दिल्ली पर हमला किया तो पृथ्वीराज चौहान ने उसे बहुत ही बुरी तरह से हराया | फिर उसे बंधी बना लिया | लेकिन मुहम्मद गौरी ने सर झुका कर माफ़ी मांग ली और वचन दिया की वो दुबारा कभी भारत की तरफ आँख उठा कर नहीं देखेगा | पृथ्वी राज चौहान ने उसे माफ़ी की भीख देकर छोड़ दिया था | माफ़ी की भीख पाकर मुहम्मद गौरी गजनी वापस आ गया था | लेकिन उसके बाद भी वो अपनी हरकतों से बाज़ नहीं आया | वो दिल्ली के खजाने को पाने के लिए षड्यंत्र पर षड्यंत्र रचता रहता था | सिर्फ विदेशी मुल्क के राजा ही नहीं बल्कि भारत के ही बहुत से राज्य के राजा भी पृथ्वीराज चौहान से ईर्ष्या करते थे | इनमे सबसे ज्यादा ईर्ष्या कन्नौज के राजा जयचंद करते थे और उनका अपमान करने का अवसर ढूँढ़ते रहते थे | उन्होंने अपनी बेटी संयोगिता का स्वयंवर में पृथ्वीराज चौहान को छोड़कर भारत के सभी राजाओं को बुलाया था | उन्होंने पृथ्वीराज चौहान का एक पुतला बनाकर द्वार पर खड़ा कर दिया ताकि वो उनका अपमान कर सके | इतना ही नहीं उसने मुहम्मद गौरी के साथ हाथ मिला कर पृथ्वीराज चौहान पर हमला करके उनको भी बंदी बनवा दिया | लेकिन मुहम्मद गौरी बहुत ही नीच था उसने जयचंद को मरवा दिया और दिल्ली की सारी दौलत लूटकर गजनी लौट गया | उसने पृथ्वीराज चौहान की आँखों को फोड़ दिया | और उन्हें कारागार में डाल दिया | दूसरी तरफ दिल्ली में पृथ्वीराज चौहान के मित्र और राजकवि चंदबरदाई अपने सम्राट के विषय में सोच सोच कर परेशान हो रहे थे | फिर वो भी गजनी गए और गौरी को याद दिलाया की कैसे पृथ्वीराज चौहान ने 16 बार उसे माफ़ी की भीख दी थी | फिर गुस्से में गौरी ने उसे भी कारागार में डाल दिया | लेकिन पृथ्वीराज चौहान बस एक मौके की तलाश में थे ताकि वो गौरी को मार सके | ये मौका खुद गौरी ने उसे दिया तीर अंदाजी के खेल का आयोजन करके | चंदबरदाई ने ये प्रस्ताव गौरी के सामने रखा कि पृथ्वीराज चौहान तीरंदाजी में हिस्सा लेना चाहते है | लेकिन ये बात जानकार गौरी जोर जोर से हसने लगा की एक अँधा तीर अंदाजी कैसे कर सकता है लेकिन वो ये नहीं जानता था कि पृथ्वीराज चौहान शब्दभेद तीर अंदाजी में माहिर थे | गौरी ने उनको मौका दे दिया था | बस ये आखरी मौका था पृथ्वीराज चौहान के पास | फिर क्या था चंदबरदाई ने गौरी को कहा कि आप हुक्म दो और पृथ्वीराज चौहान तीर चलाएंगे | गौरी ने जैसे ही तीर चलाने का हुक्म दिया उन्होंने गौरी के शब्दों और आवाज़ को आधार बनाते हुए तीर चलाया और तीर सीधा मुहम्मद गौरी के सीने में जा घुसा और गौरी ने वाही दम तोड़ दिया | उसके बाद चंदबरदाई ने पहले पृथ्वीराज चौहान को चाकू मारा और फिर अपने आप को | क्यूंकि पृथ्वीराज चौहान को गुलामी पसंद नहीं थी | उनका मानना था गुलामी से अच्छा तो मृत्युलोक है और दुश्मनों के हाथों मरना उनकी शान के खिलाफ था | आज पृथ्वीराज चौहान का नाम सुनते ही हिन्दुस्तानियों का सीना गर्व से ऊँचा हो जाता है |
5. कृष्णदेवराय जी
दक्षिण के महान राजा कृष्णदेवराय जी जो की विजय नगर के शाशक थे | उनका जन्म 16 फरवरी 1471 में कर्नाटक के हम्पी में हुआ था | ये तुल्लू वंश के तीसरे शाशक थे | इन्होने दक्षिण की तरफ कभी मुग़लों को बही बढ़ने ही नहीं दिया | इन्होने कई मंदिरों का निर्माण किया | ये सबसे ताकतवर हिन्दू राजाओं में से एक माने जाते थे | इनका ऐसा प्रभाव था कि बाबर ने कभी भी इनके राज्य पर हमला करने की कोशिश नहीं की थी | कृष्णदेवराय जी वह राजा थे जिनकी सोच का कायल अकबर भी था | तुगलक वंश के शाशक मुहम्मद बिन तुगलक के शाशनकाल के अंतिम समय उसकी गलत नीतियों की वजह से पूरे राज्य में अव्यवस्था फैल गयी थी | इसका दक्षिण के राजाओं के खूब फायदा उठाया | उन्होंने अपने राज्यों को स्वतंत्र घोषित कर दिया था | इसी दौरान हरियर और बुक्का ने 1333 ई. में विजयनगर साम्राज्य की स्थापना की | इस राज्य के सबसे शक्तिशाली राजा कृष्णदेवराय जी थे | जब उन्होंने राज्य की बाग्दोरे अपने हाथ में ली थी तब राज्य में विद्रोह का महाल चल रहा था | राजा बनते ही पहले तो उन्होंने विद्रोह का माहौल शांत किया और अपने राज्य की सीमा को मजबूत किया | वे बहुत शांतिप्रिय राजा थे | वे किसी समस्या का हल बीच का रास्ता निकल के किया करते थे | उन्होंने अवंतिका जनपत के महान रजा विक्रमादित्य के नवरत्न रखने की परंपरा से प्रभावित होकर अपने राज्य में अष्ट दिग्गज की स्थापना की | यह अष्ट सिग्गाज पूरी तरह से राजा कृष्णदेवराय जी के अधीन थे | उन सभी अष्ट दिग्गजों का काम राज्य को सुखी बनाये रखने के लिए राजा को सलाह देते रहे | कृष्णदेवराय जी के ये अष्ट दिग्गज उन्हें हर चीज की सलाह देते थे चाहे वो राज्य में खुशहाली की, या दुश्मनों से युद्ध की हो या फिर अन्य कोई | बाद में अष्ट दिग्गज को नवरत्नों में बदल दिया गया था जिसमे तेनाली रामा को भी सम्मिलित कर लिया गया था | तेनाली रामा को उनके राज्य का सबसे प्रमुख और बुद्धिमान दरबारी माना जाता था | इतना ही नहीं उनकी सलाह और होशियारी की वजह से कई बार राज्य को आक्रमणकारियों से निजात मिली | दरबार में उनकी मौजूदगी से राज्य में कला और संस्कृतियों को भी बढ़ावा मिला | तेनाली रामा विजयनगर साम्राज्य के चाणक्य थे | कृष्णदेवराय जी युद्ध कला में अच्छी तरह से निपुण थे | माना जाता है की उन्होंने अपने 21 वर्ष के शाशन काल में 14 युद्ध लडे और सभी युद्धों जीत हांसिल की | आपको यह जानकार हैरानी होगी की बाबर ने अपनी आत्मकथा तुजुके बाबरी में कृष्णदेवराय जी को भारत का सर्वाधिक शक्तिशाली शाशक तक बता दिया था | कृष्णदेवराय जी एक योद्धा होने के साथ साथ एक विद्वान् भी थे | उन्होंने तेलगु के प्रसिद्ध ग्रन्थ अमुक्त माल्यद की रचना की | उन्होंने संस्कृत भाषा में एक नाटक जामवंती कल्याण को भी लिखा था | उनको इनके तेज़ दिमाग के लिए जाना जाता था | उन्होने हर वो चीज को अपनाया जो उनके राज्य को खुशहाल रखे | यही कारण है कि कृष्णदेवराय जी का नाम इतिहास में अब भी दर्ज है |